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अभ्रि॑रसि॒ नार्य॑सि॒ त्वया॑ व॒यम॒ग्निꣳ श॑केम॒ खनि॑तुꣳ स॒धस्थ॒ आ। जाग॑तेन॒ छन्द॑साङ्गिर॒स्वत् ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अभ्रिः॑। अ॒सि॒। नारी॑। अ॒सि॒। त्वया॑। व॒यम्। अ॒ग्निम्। श॒के॒म॒। खनि॑तुम्। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धस्थे॑। आ। जाग॑तेन। छन्द॑सा। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत् ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग भूमि आदि से सुवर्ण आदि पदार्थों को कैसे प्राप्त होवें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे कारीगर पुरुष ! जो (त्वया) तेरे साथ (सधस्थे) एक स्थान में वर्त्तमान (वयम्) हम लोग जो (अभ्रिः) भूमि खोदने और (नारी) विवाहित उत्तम स्त्री के समान कार्य्यों को सिद्ध करने हारी लोहे आदि की कसी (असि) है, जिससे कारीगर लोग भूगर्भविद्या को जान सकें, उस को ग्रहण करके (जागतेन) जगती मन्त्र से विधान किये (छन्दसा) सुखदायक स्वतन्त्र साधन से (अङ्गिरस्वत्) प्राणों के तुल्य (अग्निम्) विद्युत् आदि अग्नि को (खनितुम्) खोदने के लिये (आशकेम) सब प्रकार समर्थं हों, उस को तू बना ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि अच्छे खोदने के साधनों से पृथिवी को खोद और अग्नि के साथ संयुक्त करके सुवर्ण आदि पदार्थों को बनावें, परन्तु पहिले भूगर्भ की तत्त्वविद्या को प्राप्त होके ऐसा कर सकते हैं, ऐसा निश्चित जानना चाहिये ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथं भूम्यादेः सुवर्णादीनि प्राप्तव्यानीत्याह ॥

अन्वय:

(अभ्रिः) अयोमयं खननसाधनम् (असि) अस्ति (नारी) नरस्य स्त्रीव साध्यसाधिका (असि) अस्ति (त्वया) त्वया सह (वयम्) (अग्निम्) विद्युदादिम् (शकेम) शक्नुयाम (खनितुम्) (सधस्थे) समानस्थाने (आ) (जागतेन) जगत्या विहितेन साधनेन (छन्दसा) (अङ्गिरस्वत्) प्राणैस्तुल्यम्। [अयं मन्त्रः शत०६.३.१.३९ व्याख्यातः] ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शिल्पिन् ! त्वया सह सधस्थे वर्त्तमाना वयं याऽभ्रिरसि नार्य्यसि यां गृहीत्वा जागतेन छन्दसाऽङ्गिरस्वदग्निं खनितुमाशकेम शक्नुयाम तां त्वं निर्मिमीष्व ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सुसाधनैः पृथिवीं खनित्वाऽग्निना संयोज्य सुवर्णादीनि निर्मातव्यानि, परन्तु पूर्वं भूगर्भतत्त्वविद्यां प्राप्यैवं कर्त्तुं शक्यमिति वेदितव्यम् ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी योग्य साधने वापरून भूमीचे उत्खनन करावे व सुवर्ण इत्यादी पदार्थ अग्नीच्या साह्याने तयार करावेत. अर्थात त्यासाठी प्रथम भूगर्भविद्या शिकून मग हे कार्य करता येते हे निश्चित जाणावे.